आधुनिकता की ओर ओझल (करमा पर्व का सरांश)
DOI:
https://doi.org/10.21276/IERJ250994851147Abstract
आदिवासियों की दिनचर्या तथा जिने के साधन प्रकृति है। इनके हर पर्व एवं तीज प्रकृति की रक्षा तथा प्रकृति की नियमों को बनाये रखने पर जोर देती है। इनका जीवन की पूरी आधार कर्म की उपर आश्रीत है और इस व्यवहार को एक पिढ़ी से दूसरी पिढ़ी में ले जाने के लिए यह समाज कहानी, नृत्यों की सहारा लेती है।
ऐसी ही कविदंतियों पर आधारित यह पर्व करमा सरगुजा संभाग के जनजातियों में वर्षाे से चली आ रही पर्व है। जिसमें बिरसा और नेनकी तथा उसके बाद उनके पुत्रों की कर्म की परिणाम समाज तक संदेशों पहूंचाने का कार्य कर रही है और इसे जनजाति समाज दो प्रकार से करती है।
- राजकर्मा - जो परिवार के सदस्यों को तथा
- देश कर्मा -पूरे समाज के लोंगो तक गीत संगीत नृत्यों वेश-भूषाओं वाद्य यंत्रों से परिचित कराने का कार्य कर रही है।
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