राजनांदगाँव में असहयोग आंदोलन एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास
DOI:
https://doi.org/10.21276/IERJ24409703765893Keywords:
सत्याग्रह, असहयोग, बुनियादी, मौलिक, दमनचक्र आदिAbstract
भारत का स्वतंत्रता संघर्ष अहिंसक था इतनी बड़ी क्रांति विश्व इतिहास में अभूतपूर्व घटना थी। सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह और असहयोग ही रक्तहीन के मुख्य अस्त्र थे उन्होंने कांग्रेस के मंच से भारतीय स्वतंत्रता के लिए तीन बड़े आंदोलन किये। जिसमंे पहला आन्दोलन 1921 में हुआ जिसे असहयोग आंदोलन के नाम से जाना जाता है। यह आंदोलन ऐसे युग में हुआ जब अंग्रेजी राज के खिलाफ बात करना तक गुनाह था। उन्होंने देशवासियों से अन्याय के विरुद्ध पूर्ण असहयोग का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि सत्य और न्याय के साथ सहयोग करना जितना बड़ा धर्म है असत्य और अन्याय के साथ सहयोग करना उतना ही बड़ा अधर्म।
यूं तो असहयोग आंदोलन अपने गर्त में अनेकानेक कारणों को समेट कर खड़ी हुई थी पर इतना निश्चित है कि अपनी आवाज को सास्वत रूप में प्रस्तुत करने एवं जनता को इन सब प्रक्रियाओं से अधिकाधिक जोड़ने के लिए तत्कालीन परिस्थितियों में इसकी शुरुआत हुई। एसे महत्वपूर्ण आंदोलन से राजनांदगाँव का वातावरण कैसे अछूता रह सकता था । राजनांदगांव में ठा. प्यारेलालसिंह ने वकालत छोड़ दी। अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार किया गया और उसके स्थान पर राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गयी। विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर पिकेटिंग की गयी, हजारों की संख्या में उन्होंने चरखे बनवाये और लोगों को चरखे का महत्व बताया तथा खादी का प्रचार किया। सियासत के कर्णधारों ने यहां भी दमन चक्र चालू किया। इसके बावजूद भी राष्ट्रीय लहर बलवती होती गयी।
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