मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीय चेतना

Authors

  • Umashankar Ray M.A Hindi (UGC NET&JRF) Department of Hindi, Lalit Narayan Mithila University, Directorate Of Distance Education-Darbhanga, Bihar

Keywords:

राष्ट्रकवि, आत्मविश्वास, अभिव्यक्ति, स्वावलंबन, नवजागरण, अहिंसात्मक, कर्मनिष्ठ, स्वाभिमान, ऊर्जामयी, गौरवशाली

Abstract

राष्ट्रभाषा को गुणवत्ता प्रदान करने वाले राष्ट्रीय चेतना एवं संस्कृति के गायक मैथिलीशरण गुप्त स्वभाव से विनम्र, शिष्ट और वैष्णव थे। माहात्मा गाँधाी के अनुयायी होने के कारण पतित उद्धार और नारी स्वतंत्रता के समर्थक थे। गुप्त जी सरल, लोकसंग्रही, आशावादी, कर्मनिष्ठ, स्वदेश के अतीत गौरव के अभिमानी और उज्ज्वल भविष्य के स्वप्न दृष्टा थे। अपने युग की समस्याओं के प्रति गुप्त जी विशेष रूप से संवेदनशील रहे। उनका काव्य एक ओर वैष्णव भावना से परिपोषित था, तो साथ हीें जागरण व सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से अनुप्राणित भी था। अन्ध विश्वसों एवं थोथे आदर्शो से इतर उन्होंने भारतीय संस्कृति के नव्य रूप का समर्थन किया। गुप्त जी ने अपनी साहित्यिक जीवन में गद्य,पद्य, नाटक, मौलिक तथा अनुदित रचनाओं द्वारा हिन्दी साहित्य को सम्पन्न किया है। इनमें दो महाकाव्य साकेत ओर जयभारत, बीस खंडकाव्य, सत्ररह गीतिकाव्य, चार नाटक और गीतिनाट्य है। गुप्त जी की सारी रचनाएँ राष्ट्रीय विचारधारा से ओतप्रोत हैं।

References

मैथिलीशरण गुप्त, ‘भारत-भारती‘, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली-2020

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डॉ श्यामला कान्त वर्मा, ‘‘कवि समीक्षा’’ संजय बुक सेंटर वाराणसी

डॉ उमाकान्त गोयल, ‘‘गुप्त जी की काव्य साधना‘‘

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Published

15-01-2023

How to Cite

Umashankar Ray. (2023). मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीय चेतना. International Education and Research Journal (IERJ), 9(1). Retrieved from https://ierj.in/journal/index.php/ierj/article/view/3190