ग्रामीण विकास एवं महिला नेतृत्व

Authors

  • डॉ. जयश्री रणसिंह सहायक प्राध्यापक, राजनीति विज्ञान, शसकीय नारायण राव मेघावाले कन्या महाविद्यालय, धमतरी, छत्तीसगढ़

Keywords:

ग्रामीण क्षेत्र, महिला नेतृत्व, महिला शिक्षा, सामाजिक व्यवस्था।

Abstract

जिस देश में धरती एवं नदियों को माता की संज्ञा दी जाती है। जहां मां दुर्गा को शक्ति एवं मां सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया और जहां रानी लक्ष्मीबाई एवं रानी दुर्गावती ने तलवारों से दुश्मनों का सर्वनाश किया उस देश में न जाने अचानक पर्दाप्रथा एवं महिलाओं का गृह कार्य तक सीमित किये जाने लगा । भारतीय समाज में महिलाओं का विशिष्ट स्थान रहा लेकिन जहां तक उन्हे पद व अधिकार देने की बात है सदियों से उनकी उपेक्षा और सही अर्थों मेें तिरस्कार ही होता रहा है। इसके पीछे आमतौर पर धारणा यह रही है कि महिलायें कोई जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं या उनमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं है जबकि वस्तविकता यह रही है कि महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया और सामाजिक और राजनितिक क्षेत्र में आगे बढ़ने के उनके मार्ग की बाधायें दूर करने के स्थान पर उनमें अड़चने पैदा करने का ही प्रयास किया गया। ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जब-जब जहां भी महिलाओं को अवसर मिला, उन्होने न केवल जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त की है बल्कि समाज के उत्थान में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

भारत में महिलाओं की आबादी लगभग आधी है। वर्तमान समय की बात की जाए तो महिलाएं पुरुषों से कमतर नहीं हैं। शहरी क्षेत्रों की महिलाएं पुरुषों से प्रतियोगिता करनें लगी है। और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में पुरुषों से कदम से कदम मिला कर चल रही है। छत्तीसढ के ग्रामीण क्षेत्रों में परदा प्रथा बिलकुल ही नहीं है। देखा जाए तो शहरों में अब भी महिलाएं पुरुषों से पीछे चल रहीं है किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में न केवल पुरुषों की बराबरी करती आयीं हैं बल्कि कई क्षेत्रों में तो आगे भी बढ़ चुकी है। कृषि के क्षेत्र में महिलाओं के बिना कृषि कार्य आगे बढ़ ही नही सकता, क्योंकि कृषि की सारी प्रक्रियाओं में पुरुषों के साथ महिलाएं भी भाग लेतीं है जैसे -रोपा, बियासी, धान कटाई, मिंजाई आदि, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है । यह केवल भारत की ही समस्या नहीं है, दुनिया भर में महिलाओं को स्थानीय सरकार में कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है।

इस मुद्दे को हल करने के लिए कुछ देशों नें ऐसी नीतियां लागू की है जो महिलाओं के लिए एक निश्चित संख्या में सीटें आरक्षित करती है।

वर्तमान में पंचायती राज अधिनियम में महिलाओं को ग्राम पंचायतों में 50 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया है। इस कारण बहुत से ग्रामों में महिला सरपंच चुनकर आई है। इस संदर्भ में ये धारणा बनी हुई है कि महिलाएं सरपंच अपने कार्य को नहीं कर पाती, उनके कार्य तो उनके पति या पुत्र के द्वारा किया जाता है। सरपंच को बैठको का सभापतित्व करना पड़ता है, समितियों में काम करना, समितियो के कार्यों का नियंत्रण रखना होता है, ग्राम सभा के कार्यों का संचालन करना पड़ता है और समय-समय पर विकासखण्ड जिला पंचायत के अधिकारियों से तथा शहरों में जाकर जिला अधिकारियों से मिलना पड़ता है। ये सभी कार्य महिलाएं कैसे कर सकेंगी उनका कार्य केवल हस्ताक्षर करना है और उनके ये कार्य अंततः उनके पतियों को ही करना पड़ेगा।

किंतु ये सब धारणाएं और शंकाए निर्मूल सिद्ध हो रही है। महिलाएं चाहे पंच हो या सरपंच उनकी झिझक दूर होती जा रही है। और वे बराबर आगे आती जा रही है। आज यह देखने में आ रहा है कि जब भी ग्राम पंचायत विकासखण्ड, जिला पंचायत के चुनाव होते है महिलाएं बड़ी संख्या में अपनी भागीदारी देने लगी है।

References

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पंचायत एक्ट धारा 19,6,7

अनुच्छेद 243, A,B,C,D,E,F,

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Published

15-09-2023

How to Cite

डॉ. जयश्री रणसिंह. (2023). ग्रामीण विकास एवं महिला नेतृत्व. International Education and Research Journal (IERJ), 9(9). Retrieved from https://ierj.in/journal/index.php/ierj/article/view/3037