CHHAATRAADHYAAPAKON (B.ED. VIDYAARTHEE) KE VYAVAHAAR PAR NYAASAYOG URJA UPACHAAR KA PRABHAAV

Authors

  • Reeta Singh (Registration No.-16220091) Research Scholar, JJT. University, Jhunjhunu, Rajasthan

Keywords:

व्यवहार, छात्राध्यापक, न्यासयोग, तनाव प्रबंधन, सामाजिकता

Abstract

भूमिका

भारतीय दर्शन में हमेशा से गुरु देवो भव: की अवधारणा रही है।

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाय

गुरु बलिहारी आपनो, गोविंद दियो बताय

अर्थात

गुरु और गोविंद दोनों सामने हो तो गोविंद का परिचय बताने वाले गुरु को प्रथम पूजन करना चाहिए। ईश्वर तत्व से भी ऊपर गुरु का स्थान है। ऐसे में, स्वभाविक तौर पर शिक्षक निर्माण एक बहुत बड़ी प्रक्रिया है। वर्तमान में यह महती जिम्मेदारी बी.एड पाठ्यक्रम के माध्यम से सम्पन्न हो रही है। यह पाठ्यक्रम ना सिर्फ एक शिक्षक को निर्मित कर रही है बल्कि यह राष्ट्र के भविष्य का  व्यवस्थित कर रही है।

"हरवार्ट के अनुसार शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य नैतिकता का विकास है।"1

महात्मा गाँधी जी के कहा कि 

शिक्षण कार्य को केवल व्यवसाय के रूप में स्वीकार करने वाला व्यक्ति कभी आदर्श शिक्षक नहीं हो सकता है।

 "रॉस ने लिखा है

 "व्यक्ति के विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आध्यात्मिक मूल्य विकसित करने का होना चाहिए।"2

फ्राबेल ने अपनी परिभाषा में आध्यात्मिक मूल्य को स्थापित किया,

, "शिक्षक बालक को सद् मार्ग की प्रेरणा देते हुए आध्यात्मिक मूल्य विकसित करते हुए अंतिम लक्ष्य पर पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करता है।"

References

I. मदान पूनम/पांडेय रामशकल (2019/2020), समसामयिक भारत एंड शिक्षा, अग्रवाल पब्लिकेशन, आगरा, पृष्ठ- 290

II. "

III. " पृष्ठ -291

IV. नारायण कपिलदेव (2007), महानिर्वाणतन्त्रम, चौखम्भा प्रकाशन, वाराणसी, पृष्ठ - 78

V. 1.महामहोपाध्याय डॉ. श्रीगोपीनाथ कविराज (2009), तांत्रिक साधना और सिद्धान्त, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, शोभा प्रिटिंग प्रेस, पटना, पृष्ठ - 340

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X. माथुर के.पी.(2013/14), अग्रवाल पब्लिकेशन, आगरा, पृष्ठ 40

XI. शर्मा डॉ. खेमराज, शर्मा डॉ. ब्रजराज (2012), अग्रवाल पब्लिकेशन, आगरा,पृष्ठ -185

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Published

15-05-2022

How to Cite

Reeta Singh. (2022). CHHAATRAADHYAAPAKON (B.ED. VIDYAARTHEE) KE VYAVAHAAR PAR NYAASAYOG URJA UPACHAAR KA PRABHAAV. International Education and Research Journal (IERJ), 8(5). Retrieved from http://ierj.in/journal/index.php/ierj/article/view/2483